हटायें लोभ का चश्मा.

दिल की ब्यथा किनको सुनाऊॅ,समझ में नहीं आता।

उचित है भी सुनाना या नहीं, कह भी नहीं सकता ।।

भरोसे पर खड़ा उतरें न उतरें, कह नहीं सकता ।

नहीं उतरी तो मुश्किल है पीड़ा,सह नहीं सकता।।

भरा बेचैनियों से दिल , सम्हाले सम्हल न पाता ।

चाहूं अगर शेयर करूॅ, कर भी तो नहीं सकता ।।

कहना उचित लगता नहीं, कहे बिन रह नहीं सकता।

बहुत ही कष्ट है दिल को, निवारण हो नहीं सकता ।।

दिलासा जो अगर देता, अनुचित ही लगा करता ।

दिलासा ब्यर्थ जायेगा, समझ में तो यही आता ।।

घटता दर्द है दिल का, समझ में तो नहीं आता।

पर कुछ लोग ऐसे हैं, जिनसे दर्द बढ़ सकता ।।

बहुत कमलोग हैं जगमें , सही जो राह बतलाते ।

रहे हों डूबते मजधार में , उसे उस पार पहुॅचाता।।

जगत में लोग जालिम है , जुर्म उनको बहुत भाता ।

डुबे है स्वार्थ में आकण्ठ , उन्हें परहित नही आता ।।

ईर्श्यालु मत्सरी ,लोभी , आज इन्सां नजर आता ।

तमोगुण से भरा मस्तिष्क, मानव का हुआ होता ।।

ब्यथा अपनी सुनाते जो , उसे क्या लाभ हो पाता?

बात को जानते सबलोग, क्षणिक संतोष पर होता ।।

पहन रखजो चश्मा लोभ का,उन्हें गड़बड़ नजर आता

रहता जो लघु वहभी उन्हें, विशाल ही दिखता ।।

चश्में को हटा देखें, असलियत सामने आता ।

उनका वास्तविक चेहरा , तभी स्पष्ट नजर आता।।

हटायें लोभ का चश्मा.&rdquo पर एक विचार;

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s