जो देखे थे सपने , संजोए हुए हैं ।
हुए जो न पूरे , बिखड़े पड़े हैं ।।
अभी तक ललक में, न आई कमी है।
थी जैसी ,अभी तक , वैसी ही पड़ी है।।
अपनी हिम्मत भी मैंने , हारी नहीं है ।
हौसला में कमी कुछ भी, आई नहीं है।।
बढ़ता ही जा रहा , हौसला रोज मेरा ।
कुछ न उत्साह में भी ,कमी है हमारा ।।
उम्मीद में भी न , आई कमी कुछ ।
घटने के बदले , बढ़ ही गयी कुछ ।।
स्वप्न देखा उसे , पूर्ण कर के रहूॅगा ।
धारना जो बनी है , बदल कर रहूॅगा ।।
लोग सपने को कोड़ा , सपना बताते ।
बे -मतलब की बातें , समझ उसको लेते ।।
सोंच में भूल उनसे , यहीं पर है होती ।
बातें प्रारूप की उनको ,समझ में न आती।।
बिन प्रारुप निर्माण , कहना है मुश्किल ।
प्रारूप आसान , करता है मुश्किल ।।
खाका बिना तो , भटकना ही तय है ।
खाका खिंचा हो , तो आसान मग है।।
सपने का एलबम तो , सब कुछ दिखाता ।
भला हो बुरा हो , जो हो सब दिखाता ।।
चयन इसमें करना , फिर आसान होता ।
निरखने , परखने का , अवसर तो देता ।।
पथ का प्रदर्शक बन , हरदम है चलाता ।
सोंयों को उठा कर , हर दम है बढ़ाता ।।