रिश्ते अक्सर बना करते , बनकर टूटते रहते ।
धागे, बाॅध जो रखते , हुए कमजोर नित जाते।।
ये धागा स्नेह का होता ,न जल्दी टूट यह पाता ।
मौसम तो बदलते हैं ,असर इस पर न हो पाता।।
समय के साथ दुनियाॅ में, बदलते सब चले जाते ।
बनें कमजोर धागों का , बंधन टूट खूद जाते ।।
मिलावट का ये युग आया,लोग सब आधुनिक हो गये।
बन्धन आधुनिक युग का ,बहुत कमजोर सा पड़ गये।।
बाहर से नहीं दिखता , पड़े कमजोर पर इतने ।
रेशे अलग सब हो गये , बिगड़े सब अलग कितने।।
धक्का सहन करने की , शक्ति कम गयी उनके।
लगी मामूली सी धक्का, सहन होती नहीं उनसे ।।
यही एक प्रेम का बन्धन , मनुज को जोड़ता रहता ।
जोड़ कर आदमी का ,परिवार,राज्य,संसार रच देता ।।
आदमी बस एक , सामाजिक प्राणि बन रहता ।
यह गुण अन्य जीवों में, उतना नहीं मिलता ।।
सामाजिक भावना जिनमें न हों, वह आदमी कैसा ?
बाहर से आदमी दिखता , भीतर जानवर जैसा ।।
अधिक दे ज्ञान मानव को , प्रकृति ने ही बनाई है ।
हर जीव से उत्तम बहुत , उनको बनाई है ।।
अपेक्षा भी रहा होगा प्रकृति को, इस जीव मानव से।
शायद ही मिल पाया उसे ,इस जीव मानव से ।।