कर दिखाती प्रकृति.

पुष्प खिलते वहॉ पर भी, जहाॅ माली नहीं होता ।

नहीं दर्शक जहाॅ होता , न रखवाला कोई होता ।।

वियवान भी उसके लिए, अजीब न होता ।

नहीं कोई सोंचने वाला , न कोई उर्वरक देता।।

विचित्र दिखता यह , बहुत आश्चर्य है होता ।

जहां मुश्किलसे आते लोग,खिला जब फूल है दिखता।

जब सोंचियेगा गौर से, तो सब नजर आता ।

बिचित्रता कितनी प्रकृति की , भान तब होता ।।

अति दुर्लभ भी पथ होते, वहाॅ कैसे पहुंच जाता ?

पखेरू भी न जा पाते, वहाॅ पर वह पहुंच जाता ।।

प्रकृति की करिश्मा को , न पूरा जानता कोई ।

अभी भी यह अधूरा है, यही है मानता सब कोई।।

विचित्र जगहों पर कभी , दिखती विचित्र चीजें।

देखा नहीं कोई कभी जो , वैसी विचित्र चीजें ।।

यह करिश्मा भी कभी, प्रकृति कर के दिखाती ।

असम्भव सी लगती चीज , सम्भव कर दिखाती ।।

जिसमें निहित हो सारी शक्ति,उसके लिये आसान सब।

असक को जो कठिन लगते ,सशक्त को आसान सब।।

प्रकृति ही केन्द्रविन्दू , उनमें निहित सब शक्तियां।

सामर्थ्य सब संभव कराती, सुधर जाती विकृतियां।।

प्रकृति का साथ देना, हम सवों का धर्म होता।

जिसने दिया सबकुछ हमें,उनको उचित सम्मानदेना।।

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