ऑखों से छलकते तेरे , जाम नजर आया ।
फड़कते तेरे लब पर, नया पैगाम नजर आया।।
तरसती मेरी ऑखो में नया , जान नजर आया ।
जो पड़े कदम धरती पे तेरे, बहार नजर आया ।।
जाये मेरी नज़रें जिधर , मधुमास नजर आया ।
भ्रमरों का गुॅजन में डुबा , संसार नजर आया ।।
निगाहें जब पड़ी तुझ पर मेरी, मुझे क्या नजर आया।
गगन से उतर आया कोई,माहताब नजर आया ।।
चमक तो ठीक वैसी ही ,नजर जिनपर न टिक पाती़ ।
तपिश बिल्कुल नहीं वैसा , बहुत शीतल नजर आया।।
खुदा मैं शुक्रिया बोलूॅ तुझे , कुछ समझ नहीं पया।
तुमने ही बनाया सब , नहीं कोई समझ भी पाया।।
pratyek panktiyan lajwab Sir…..
ऑखों से छलकते तेरे , जाम नजर आया ।
फड़कते तेरे लब पर, नया पैगाम नजर आया।।
पसंद करेंपसंद करें
बहुत बहुत धन्यवाद ,आदरनीय!
पसंद करेंपसंद करें