तन्हा कहीं चुपचाप कभी, जा बैठ हूॅ जाता।
पुरानी बात बादल बन, घुमड़ मन में तभी छाता।।
ये बादल संग ले मेरे,कभी मन को उड़ा लेता ।
जहाॅ जी चाहता उनका, मुझे भी संग ले जाता।।
पुरानी बात का मंजर, मुझे कुछ कब बता देता।
जिसे देखा न सोंचा था, वही सब कुछ दिखा देता।।
पवन की बेग में मिलकर,कभी अठखेलियां करता।
गगन से झाॅक धरती का,नजारा देखता फिरता।।
धरा का दृश्य मनमोहक,हरी चुनरी नजर आती ।
जमा जल तो जरा उसमें, श्वेत गोटा नजर आती ।।
सज-धज धरा दुल्हन नवेली, सी नजर आती ।
गजब का दृश्य यह प्यारा ,सबों का मन को मोहती।।
पुरानी बात जीवन को, हॅसा देती रुला देती ।
कभी गंभीर बनने को हमें है, विवस कर देती ।।
बहुत आनन्द देती है, बचपन की बहुत बातें।
दुखी भी कम नहीं करती,दुखद बचपनकी कुछ बातें।।
उसे चलचित्र की भाॅती, मस्तिष्क देखता रहता ।
अनुभूतियाॅ उससे उन्हें, मिलती सदा रहता ।।
कुछ बातें हुई ऐसी , जिसे समझा नहीं तब था ।
समझ में बात अब आई, फिर तो हाथ मिलना था।।
तमाशा देखते रहिये , तमाशा ही समझ उससे।
लेना चाहते कुछ सीख तो फिर, लीजिए उससे।।