गौरकरें समझें प्रकृति को,क्या-क्या चक्र चलातीरहती।
रूपको अपना बदल बदल,गुलकैसा नित्य खिलाती रहती।।
अहम रोल जल का जग मे,तीन अवस्थाएं उनकी।
कभी ठोस तो द्रव कहीं पर,वाष्प रूप भी है उनकी।।
इन्ही तीन रूपों में जल, जहां कहीं भी रह पाता।
जीवनचक्र भी उसी रूप में,चलता सदा चला जाता।।
अन्य सभी जीवों में भी, यही तीन गति होती ।
बाल,युवा और वृद्धावस्था,सब में ही है होती ।।
यह चक्र सदा चलता रहता,कभी नहीं रुक पाता।
प्रकृति ने उसे बनाई ऐसी,कर्म न उसका रुक सकता।।
जीवन की सारी चीजों को,प्रकृति प्रदान है करती।
कभी न कोई कीमत लेती, मुफ्त सदा ही देती ।।
प्राण-वायु से भरा पवन ,जो जीवन सब को देता।
शुद्धि उसकी बनी रहे, कुछ प्लांट लगा भी देता।।
प्रकृति का यह काम अनोखा,स्तंभित कितना करदेता।
उसे गौर से खुद सोंचें, मन तभी समझ कुछ पाता ।।
मानवतो बात समझताहै,फिरभी वह कर्म गलत करता
लोभ और लालच में पड़करआघात स्वयंपर करलेता।।
जो परम मित्र होते उनके,अपने हाथों जीवन हरता।
परोक्ष रूप से गर सोंचें,खुद अपनी हत्या कर लेता ।।
लोभ बहुत घातक होता ,गर घुसा नाशकर ही देता।
निर्मम भी इतना होता ,गर तड़पें रहम नहीं करता ।।
साथ प्रकृति को है देते,तो काम बहुत हितकारी है।
निर्मम हत्या पेड़ों का छोड़ें,जीवन के लिये जरूरी है।।