सुन्दर.

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कौन है सुंदर कौन असुंदर,यह द्रष्टा की बात है ।

कौन किसी का मन को भाये,यह तो उनकी बात है।।

श्रेष्ठ चयन कर सब लेता,फिर भी सब चयनित होजाते

जिसको देख असुंदर कहते,चयन तो उनकेभीहो जाते।

सुन्दर और असुंदर तो बस, तुलना की ही बात है।

तुलना चाहे जिससे की जाये , उनदोनो की बात है।।

रूप से सुंदर,गुणसे सुन्दर,और ज्ञान से सुंदर ।

इस दुनिया में बहुत हुए हैं,अन्य तरह का सुन्दर।।

गुण, ज्ञान, व्यवहार से, जो होते हैं अति सुन्दर।

उस चरित्रवान के दिल में, सारे लगते हैं सुन्दर।।

गुण अवगुण तो सब में होते,कमोवेश मानव के अन्दर।

आधिक्य कभी जिसका होजाता,प्रभाव उसीका रहता उसपर।।

सारे के सारे हैं सुन्दर ,जो दिखते वे सब है सुंदर ।

जो आंखों को नजर न आते,वहभी तो काफी हैसुंदर।।

जो इतनी सुन्दर चीज बनाई, खुद कितना होगा सुन्दर।

रचा होगा चाहे जिसनेभी,होगा सुंन्दरतर बाहर-अन्दर।

अन्दर बाहरमें फर्कहो जिनमें,अधिक नहींवह चलपाता

जिनमें फर्क नहीं होता,वही कुछ कर दिखला पाता।।

कथनी-करनी एक हो जिनमें,यह गुणहै कितना सुन्दर।

ऐसों का मन मलिन न होता,सदा बना रहता सुंदर।।

सत्य सदा सुन्दर है होता ,सदा बना रहता सुंदर।

जिस मन में हो भावभरा यह,वहभी बन जाता सुन्दर।।