गये कहां बीते मेरे दिन,क्या लौटकर फिर आओगे ?
बेताब हो मैं ढ़ूढूता ,क्या फिर कभी मिल पाओगे ??
जाओगे तो जाओगे ही ,लौट फिर क्या आओगे ?
विरह की ज्वाला में मुझे, जलाते ही क्या रह जाओगे।
विरह की अग्नि क्या जलाती,जलती धुआं होती नहीं।
तिल तिल धुआंसे मारती ,ऐसी सितम क्या ढाओगे।।
चिन्ता न मरने की मुझे,इससे क्या तूं बच जाओगे।
जो आ गये ,जाना भी तयहै,क्या तुम सदा रह पाओगे।
है ब्यर्थ ऐसा सोंचना ,क्या सोंचकर कर पाओगे?
बचा नहीं कोई आजतक,तुम भी नहीं बच पाओगे।।
आते कभी गम जिंदगी में,रोक तो न पाओगे।
झेलना पड़ेगा ही ,क्या भाग कर बच जाओगे??
है स्मरण मुझको अभीतक,सुलाती थी गाकर लोड़ियां।
नखरे बहुत करते थे, उन्हें सहने की थी कमजोरियां।।
हम मचाते थे उधम, नखरे उठाती मां सदा ।
उलाहना पड़ोसियों का,नित सहन करती सदा।।
अमरूद ,आमों की बगीचा , में लगा फल है कहां?
फेंक पत्थर झाड़ देने, में मजा मिलता जहां ।।
बागों बगीचे सबों का ,हिसाब हमारे पास था ।
किसमें फला है आम मीठा , सबकुछ हमारे पासथा।
मौज मस्ती का वो आलम,ले फिर कभी क्या आओगे?
गये चले पर यह बता दो,लौट फिर कब आओगे ??