कसक उठती है रह-रह कर,बताऊं किसी को कैसे?
देती है टीस रह -रह, छिपाऊं किसी से कैसे ??
रहती नहीं स्थिर कहीं , बदलती जगह है पल-पल।
पूछे अगर कोई कहां , बतलाउं जगह मैं कैसे ??
पूछें न बात दिल की , यूं यह बड़ा है इतना ।
समुंदर से ज्यादा गहरा ,नापूं इसे मैं कैसे ??
थाहना है मुश्किल , थाहा कहां किसी ने ?
बौरा भी मैं अनाड़ी , थाहूं उसे मै कैसे ??
दर्द दिल का दिल में ,रखना दबाये मुश्किल।
देती बताये आंखें , छिपती कहां है उनसे ??
दिल का आईना ये मुखड़ा, प्रतिबिंब सारी इनमें।
जो जानते परखना , छिपाऊं मैं उनसे कैसे ??
हिलती जुबां न थोड़ी, चाहे जो दिल भी कहना।
कसक को , नयन की भाषा ,बतलाये भी तो कैसे??
जुबां गर ,चुप भी रह जाती ,बयां कुछ कर नहीं पाती ।
पर यह आईना दिल का, इसे समझाउं मै कैसे ??