सितम ढाते वही सहते।

सितम ढाते वही सहते, माहिर वे सभी में है।

कभी सहना सितम पड़ता,तो ढाने में नहीं कमहै।।

सितम ढाकर मजा लेते,सहन कर खुद दुखी होते।

अक्सर लोग दुनिया में, ऐसा निर्दयी होते ।।

सितम ही दुख का कारण है,देना या सहन करना।

जिसे देते दुखी होता ,दुखद होता सहन करना।।

सितमगर ही कभी भाता, सितमगर ही है तड़पाता।

सितमगर कब न जाने क्या ,कैसा गुल खिला देता।।

कहते दर्द मीठा हो, मजा उसका लिया करते ।

बड़े ही प्रेम से उस दर्द को, सीने से लगा रखते।।

मानव है गजब प्राणी , इसे मुश्किल समझ पाना।

जगत के सारे जीवों से ,धूर्त इस जीव को माना।।

कड़वी चीज खा कर भी, मजा इन्सान लेता है।

कड़वी घूंट मदिरा पान कर,आऩन्द लेता है ।।

सहन कर भी कभी पीड़ा, लोग आनन्द है लेते ।

जहर का घूट पी लेते, बन भगवान है जाते ।।

मानव भी गजब का जीव है, जाने क्या किये देता।

समझ से जो पड़े हो चीज,उसे वे कर दिखा देता।।

असम्भव ही लगा करता ,मानव को समझ पाना।

दिल में क्या छिपा रखा, बात को जान है पाना।।

सारे जीव में सबसे अधिक, खतरा यही करता ।

दिल में क्या छिपा रखा,भनक इसका नहीं मिलता।।

कभी तो सोंच में बदलाव भी,आता कभी ऐसा ।

जैसे कल्पना की भी पहुंच ,होता नहीं वैसा ।।

एक उत्तर दें

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s