चलो अकेला,मत इन्तजार कर,कौन तुम्हारा देगासाथ।
दृढ-निश्चय कर काम शुरुकर,फिर लोग चलेंगे तेरेसाथ।
किन राहों से तुम्हें गुजरना, है तुमको निश्चित करना ।
जिन राहोको पकड़लिया,तो है मुश्किल फिर उसे छोड़ना।।
पथ कठिन रहे,या रहे सुगम, नहीं फिक्र इसका करना।
बाधायें तो मिलना तय है,पर कर्म तुझे अपना करना ।।
अब नहीं देखना पीछे मुड़ कर,बढ़ना बस आगे बढना।
बाधाओं पर टूट पड़ो, भय को भयभीत है कर देना ।।
भय देख तुझे हो भाग खडा,भयभीत उसे ऐसा करदो।
भय को ही भूत कहा जाता,उसे ही आतंकित कर दो।।
अधम,दुराचारी तो पथमें, सदा तुझे मिल जायेंगे ।
पर चोर सदा कमजोर ही होते,फिर भी तुझे डरायेगें।
बुलंद हौसला होता जिनका,हिम्मत जिनमें टकरानेका।
उरगणतो लुप्त स्वयं होजाते,जोहो सूर्योदय होनेका
चलो अकेला निज सत्पथ पर,लोग स्वयं आ जायेगें।
धीरे धीरे तो लोगों का ,एक कारवां बन जायेंगे।।
श्रेष्ठ-पुरुष जितने आये,सब कर्मक्षेत्र में भरमाये ।
अपने मस्तिष्क का खोल पिटारी, सबमें खूब लुटाये।।
कुछ समझे, कुछ समझन पाये,कुछ नहीं समझना चाहे
ग्रहण किया जो चाहा करना,फिरभी कुछ बचे अभागे।
पुरुषोत्तम जो राम बने,कम कष्ट उन्होंने झेला था?
बड़े बड़े बाधाओं से वे,हर कदमों पर खेला था ।।
जो कोई जितने बड़े हुए, इतिहास उलट कर देखें ।
झेले कितने कष्टो को उसने,नजर उठा कर देखें ।।