मित्र गर सच्चा मिले.

मैं किसे अपना कहूं , ढूंढ़ता मिलता नहीं ।

फेरता हर ओर नजरें, पर कोई नजर आता नहीं।।

उसे ढ़ूढना आसां नही, इस आज के समाज में।

मुश्किल ही नहीं होताअसंभव,इस कलियुगी समाजमें।

निस्वार्थ कोई साथ दे, ढूढ़ना आसां न उनको ।

संयोगवस गर मिल गया ,समझें खुदा की देन उनको।।

देन ही केवल नहीं, मुकद्दर की तेरी बात है ।

उपहार यह सबसे अनोखा,सौभाग्य तेरे साथ है।।

किस्मत बहुत होती बड़ी,हो धन्य जो तुमको मिला।

किस्मत को अपनी दाद दो,ऐसा तुझे जो मित मिला।।

जिसने दिया उसके खजाने,का अनूठा रत्न यह ।

रहम किया जिसनें दिया , बहुमूल्य इतना रत्न यह।।

जिसको मिला हो मित्र सच्चा, भाग्यशाली हैं बहुत।

इठलाये अपने भाग्यपर,उसे कह सकते हैं बहुत ।।

मंथन करेंगे आप जब , मक्खन निकल आ जायेगा।

मंथन नहीं जबतक करेंगे ,तो यह कहां मिल पायेगा ।।

पर कथन हैं लोग का, नहीं ढ़ूढ़ने से मित्र मिलता ।

मिल जायेगें खोजे बिना ,यह पूर्वजन्म का कर्म रहता।।

पर बनाने से न बनता, स्वयं बन जाता कभी ।

दुनिया चलाता कोई तो, नजर नहीं आता कभी ।।

अपना मिलेगा या नहीं,कह भी तो कोई सकता नहीं।

वक्त पर पहचान होता, बिन कसौटी कुछ नहीं ।।

कौन अपना या पराया , दुष्कर इसे पहचानना ।

गाढ़े समय में दे सहारा , अपना उसे ही मानना।।

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