जलते जलनेवाले जलनेंदे,जलकर कोयला बन जायेंगे।
उससे भी अधिकगर और जले,राख स्वयं बन जायेंगे।।
जलनेवाले स्वयं जलेंगे, औरों का क्या ले लेंगे ।
ईर्ष्या की अग्नि मनमे उनके, धधका सदा करेगें ।।
जिसके दिलमे ईर्ष्या होती,धधकती स्वयं सदा रहती।
उनकी ज्वालाकी लपटें,जलती और उसेजलाती रहती।
स्वयं भस्म होती रहती, औरों को भस्म किये देती।।
सिवा भस्म के और नहीं कुछ,उनके मन में ही होती।।
जलना औरजलादेनाही,उसकोउसको सिर्फपता होता।
शीतलता की शक्ति कितनी,उनको कहां पता होता?
भस्मजो जलकर हो जाता,सबतत्व निकल बाहरहोता।
कुछ चीज बची जो रह जाती,स्मृतिशेष ही कहलाता।।
शीतलता की छांवो में, जो रहना सीखा है ।
सही जिंदगी जीने का,कला उसने सीखा है।।
हरियाली से भरी हुई, उनका जीवन ही होता।
खुशियां ही खुशियों का आलम, उसके मनमें होता।।
सुख-शांति से भरा हुआ,जीवन वह सदा जिया करता।
नहीं क्लान्तिवह किसी तरहका,मनमेकहीं लिया करता
दुनिया को रचने वालों ने,जैसा हमें रचा था ।
काम, क्रोध,मद लोभ नहीं दे, उसने तो भेजा था??
जैसा भी उसने भेजा हो,वही काश जीवन जीता ।
कितना निर्मल,मुक्त-अवगुण,मानव का जीवन होता।।
सदा चैन की बंशी बजती,मानव जिसे बजाता।
छल-प्रपंच से दूर सदा ,मानव कैसा मानव होता।।