क्या लेकर आये दुनिया में, खोने का जिसका भयहै।
खोने जैसी कुछ चीज न लाये ,यह तो इतना तय है।।
जिसने भी भेजा हमें बनाकर,दिया ह्दय कितना निर्मलहै।
सारे अवगुण से होता बंचित , किंचित मात्र न मल है।।
लगा डालने जग अपना, ग़ंदा प्रभाव दिलपर मेरा ।
काम ,क्रोध,मद, लोभ ने उसपर,लगा डालने अपना डेरा।।
किया असर धीरे-धीरे,हर मानव के पावन दिल पर।
प्रदूषण बढ़ते गये उसमें,छाते गये उनके दिल पर।।
स्वच्छ वसन पर गन्दगी, करता है जल्द असर।
दुर्जन सारे सज्जनों पर, ढ़ाता है तुरत कहर ।।
‘भय बिन प्रीति नहीं होती,’यह बहुत पुरानी रीति।
धरत महावत हाथ गजाला ,तब सुनता है हाथी ।।
न लेकर आये न लेकर जाना, यही रहेगें धन सारा।
खाली हाथों सब लोग गये,होनी है गति यही हमारा।।
दीवाने सा हरदम पीछे ,दौड़ाती है तुमको माया ।
अनबुझ सा दौड़े जाते हो ,कैसी कुमति तुमपर छाया।।
कर्म करो कुछ ऐसा जगमें, कीर्ती जिससे अमर रहे।
आते लोग चले हैं जाते, लाभ उन्हें भी मिला करे ।।
सूर ,तुलसी ,दिनकर जैसे, लोग आये और चले गये ।
पर उनकी कीर्ती सदा रहेगी, कहां उन्हें हम भूल गये।।
देकर ही गये खोये नहीं कुछ,क्या खोना था उनको?
होंगे लाभान्वित पाठक उनके, सुकून मिलेगा उनको।।
दिये ज्ञान ,देते जायेगें, ऐसा देकर जग को गये।
उनकी कृति लाभान्वित कर दे,ऐसा ही कुछ कर गये।।
कीर्ती तेरी साथ रहेगी ,सब यही धरा रह जायेगा।
याद करेंगे दुनिया वाले, कुछ लोग इसै बतलायेगें।।