नभ में चीजें तो एक नहीं , पर कहां सभी दिख पाते।
रहते आंखों के आगे ही , नजर कहां पर आते ।।
उन्मुक्त गगन में नजर डालिये,सब का जहां निलय है।
ग्रह,नक्षत्र,न जाने कितने, सब ही जिनमें लय है ।।
तैर रहे आंखों के आगे, अगिनत ,अनन्त नक्षत्र ।
परख न पाया जिन्हें आजतक,खगोलशास्त्री का नेत्र।।
रहते जो नजरों के आगे ,नजर नहीं पर आते ।
साधारण नयनों से जिसको कोई,परख नहीं है पाते।।
बात तो यह सत्य है, इन सब का अलग बिसात ।
फिरभी नजर नहीं आते,यह तो दृष्टि की बात ।।
अपनी नंगी आंखों से, बहुत कुछ देख नहीं पाते ।
इसका तो यह अर्थ नहीं, स्तित्व नहीं इनके होते।।
पवन बिना तो कोर्ई जग में,जिन्दा नहीं रहा करते।
सदा ही रहता साथ हमारे,नजर कहां पर हैं आते ।।
कुछ नजरें ऐसी भी होती ,महसूस ही उनको कर पाते।
आंखें देख न पाती उनको,स्पर्श हमें बतला पाते ।।
इन्द्रियो को देकर धोखा , कुछ जिवाणु घुस आते ।
यह दुष्ट तोड़कर सारी सीमा , अपनी पैठ जमा लेते।।
क्या खूब बनाई है दुनिया को, चाहे जो इसे बनाई।
तारीफ नहीं गर कर पाते, तो यह अनुचित है भाई।।
सारे जीवों में सबसे उत्तम,हम मानव ही बन पाये ।
अभी अनन्त चीजें हैं जिनको,देख समझ नहीं पाये।।
देकर विवेक जिसने हो भेजा, कर्म प्रथम कर उनका।
जानों मकसद को उनका ,तब पूर्ण कर्म कर उनका ।।