मित्र एक अनमोल रत्न.

मित्र बनना और बनाना , सरल बहुत यह काम।

पर बनाकर उसे निभाना , कठिन बहुत है काम ।।

यह शब्द बहुत छोटा पर उसमें, गहराई है कितनी।

उससे भी है बहुत अधिक, है सागर की जितनी ।।

कोई मित्र बनाता नहीं किसी को,स्वयं ही बन जाता है।

यह उपहार विधाता का , उसे स्वयं मिल जाता है ।।

यह रत्न बड़ा अनमोल है ,सब पर पड़ता भारी ।

नजरें सब हैं रखा करता , इस पर दुनिया सारी।।

संयोग वस गर आदमी को ,मित्र सही मिल जाये ।

समझे इससे अनमोल दूसरा,रत्न‌ न होगा कोये ।।

जिनकी किस्मत बहुत बड़ीहो,उसे सिर्फ यह मिलपाता

पत्थर तो सर्वत्र पड़े हैं, पर हीरा नजर नहीं आता ।।

बड़ा भाग्य ऊंचा होता तब , तब मित्र उसे मिल पाता

इतिहास सजा उस कोहिनूर को,पास उसे रख लेता।।

जब चलती बातें मित्रता की,नाम उसी का आता ।

इतिहास पलट करउसी पृष्ट को,समक्ष उसे रख देता।।

कृष्ण -सुदामा कर्ण अन्य सा ,और लोग कुछ वैसे।

सदा याद आते हैं रहते, हर जन जीवन में वैसे।।

सदा प्रेरणा बनकर सब को, रौशन करता रहता ।

मित्र बड़ा किमती होता है , याद कराते रहता ।।

पर आज कहां मिल पाते ऐसे,जो साथ समय परदेता।

अच्छे दिन में संग रहेंगे , मुंह मोड़ बुरे में चल देता।।

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