छिपाये नहीं छिपता .

आंखों के बहते अश्क को, गर रोक भी लेते ।

थामे लगाम कस कर उसे , गर थाम भी लेते।।

मुखड़े पे आई भंगिमायें , सब कुछ बता देते ।

गुप्त रखा था जिसे , सब भेद कह देते ।।

आसां नही मुश्किल है जो , सुख- दुख छिपा लेते।

प्रयास तो करते अथक पर , असफल सदा होते ।।

सम्बन्ध दिल और नयन का , प्रगाढ़ है होता ।

जब दिल हो दुखता आपका ,नयना स्वयं ही रोता।।

दिल जब शांत हो जाता ,नयन खुद शांत हो जाती ।

समझाने -बुझाने की इन्हें, जरूरत ही नहीं पड़ती ।।

परस्पर सब मिले रहते , मनुज की इन्द्रियां सारी ।

सजग रहतेसभी निज धर्ममें,तो लगतीजिंदगी न्यारी।

प्रकृति ने सोंचकर कितनी, हर चीजें बनाई है ।

मानव देखता हरदम , समझ पर कुछ न पायी है।।

उसे जितना समझना था , बहुत थोड़ा समझ पाया।

वही थोड़ा समझउस नासमझ को, पूरा नजर आता।।

अधूरा ज्ञान मानव को, बड़ा पागल बना देता ।

जहर उदंडता का घोल , उसमें पूर्ण भर देता ।।

पात्र खाली रहा करता , वही ज्यादा खनक जाता।

ज्यों भरता चला जाता , खनक कमता चला जाता ।।

कथन तो यह पुराना है,आज भी सत्य पर लगता ।

शोर वे ही मचाते हैं अधिक, जिनमें दम नहीं रहता ।।

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