कितने नजारे भर कर , दुनिया है ये बनाई ।
दुनिया बनाने वाले , क्या चीज़ तूं बनाई ।।
पर्वत ये कितना ऊंचा ,बाहर बड़ा समंदर ।
रत्नों का क्या खजाना , उनमें भरे हैं अंदर ।।
जलचर विचित्र उनमें , विचरण सदा है करता ।
विभिन्न जीव जन्तु, अम्बार इसमें रहता ।।
कितना बड़ा खजाना , जल जीव जंतुओं का ।
जीवन जो सब को देता, जल जो सचर अचर का।।
अनेकों विचित्र चीजें , दुनियां को दी है तूने ?
ऐ प्रकृति बता दे , जिसको रची न तूने ??
रचकर न तूने छोड़ी , ढ़ब से उसे चलाती ।
रचना बहुत ही थोड़ी , मेरी समझ में आती ।।
जब से बनी है दुनियां,मानव को तब बनायी ।
सारे जीवों में उत्तम , ज्ञानी से बनाई ।।
जाने तुझे क्या सूझी , कुछ गंदगी बनाई ।
उनमें किसी को थोड़ा ,किसी को पूर्णतः डुबोई।।
दुर्बल बहुत से हो गये , इस गन्दगी के कारण ।
रखा जो काबू खुद पर ,उसका हुआ निवारण।।
ऐ प्रकृति सम्हालो , अब सृजना को अपनी ।
बिगड़ी सबों की प्रकृति , बिगड़ेगी और कितनी ।।
अब तो इन्हें सम्हालो , हद पार कर गयी है ।
कर देर अब न थोड़ी , हालातें बिगड़ गयी है।।