हर बातें बताई तो नहीं जाती.

सारी बात को कहकर ,बताई तो नहीं जाती ।

समझना चाहते,लेते समझ, समझाई नहीं जाती।।

सृष्टि रची जो भी कोई ,नजर भी तो नहीं आता ।

उनकी कृतियों दिखती भले ,पर खुद कहां दिखता।।

ढ़ढ़ने में रात-दिन , है जो लगा रहता ।

किसी के बिन बताये ही , उसे वह ढ़ूंढ़ ही लेता।।

प्रकृति जो कुछ बनाती है , नहीं सब कुछ बता देती।

कुछ को यह बता देती , कुछ को ढ़ूढ़नी पड़ती ।।

यह सृष्टि अनंत है, है अनंत उनकी कृतियां ।

विविध चीजें बना उसमें , भर दी कला की कृतियां।।

असंख्य चीजों से भरा , ब्रह्मांड है अपना ।

सम्पूर्ण कोई देखान शायद,महज यह एक है सपना।।

बहुत सी बात ऐसी है , जिसे हम गुप्त है कहते ।

समझ तो लोग सब जाते स्वत ,समझाया नहीं करते।।

अन्य कुछ और बातें हैं, जो संदेह में रहते ।

जिसे देखा नहीं कोई ,लगाया अटकलें करते।।

उसे विज्ञान की भांती , साबित कर नहीं सकते ।

खड़ा करभी कसौटी पर ,परख कर कह नहीं सकते ।।

शक पैदा कराने का , यही एक मार्ग रह जाता ।

तर्क को काटनें का तर्क से ,यही एक रास्ता होता।।

उठाने का इसी का फायदा , मिल लोग को जाता ।

अवसर बरगलाने का , उनको प्राप्त हो जाता ।।

विवेक तो सबको मिला , बातों को समझने का ।

जरूरत ही नहीं पड़ती , अलग फिर से बताने का।।

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