ख्वाब ही संजीवनी.

गर ख्वाब है ये जिंदगी , तो ख्वाब का फिर क्या ?

यह कुछ पलों का खेल है ,इस खेल का फिर क्या??

ख्वाब तो है ख्वाब ही , हकीकत से वास्ता ही क्या ?

किस पल न जाये टूट , बिखरने में होती देर क्या ??

रब ही बता सकेगा सच , किसी और को पता ही क्या?

डूबोये रहेगा कब तलक , यह माजरा ही क्या ??

सोने को ही खोना बताते , कुछ लोग है न क्या ?

पर, खोये वगैर ख्वाब भी , आती कभी है क्या ??

ख्वाब ही संजीवनी , न जिंदगी का क्या ?

बुझते हुए दिये को फिर ,जलाती नहीं है क्या??

मिट जाये ख्वाब जिंदगी से , तो खत्म जिंदगी न क्या?

बिन ख्वाब कोई ज़िन्दगी ,वह जिंदगी भी क्या ??

3 विचार “ख्वाब ही संजीवनी.&rdquo पर;

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