श्रम कठिन किया होगा मानव,तभी आगे बढ़ पाया होगा।
बल केसाथ विवेक लगाकर,अपना काम बढ़ाया होगा।
सोचें आदिमानव की बातें,पग पगपर बाधा झेला होगा
कुछ भीतो पास नहींथा फिरभी,जीवनका खाका खींचा होगा।।
पग-पग पर आये बाधाओं से,उसे जूझना पड़़ता होगा।
अपने जीवन को सदा दावपर,लगाये रहना पड़ताहोगा
कोई नहीं साथ देता होगा, स्वयं अकेला करता होगा।
सिर्फ भरोसा अपने पर, करके जीवन जीता होगा ।।
प्रकृति प्रदत्त विवेक का,यह हरदम लिया सहारा ।
इसी विवेक के बलबूते ,जीवन में नहीं किसीसे हारा।।
जरूरत जब महसूस किया, मस्तिष्क पर जोर लगाया।
मंथन करते करते मस्तिष्क ने, उसे खोज ही लाया ।।
आवश्यकता पड़ती मानव को,तब करता आविष्कार।
बिना जरूरत कभी न कोई, होता आविष्कार ।।
दृढ़-प्रतिज्ञ मानव जब होता,उसमे धुन आ जाता ।
छिपी हुई चाहे जितनी हो ,ढ़ूढ़ उसे ही लेता ।।
यही खोज करके मानव, आज यहां तक पहुंचा ।
पर विकृति कुछ अन्य तरह का,उसमें भी आ पहुंचा।।
विकृतियों के बस मे हो,मानव मस्तिष्क बदल गया।
सारे जीवों से उत्तम मन , दुर्जनता में बदल गया ।।
अब मानव का कौन भरोसा, जाने क्या कर डाले।
सारी जगती हो नष्ट जाये,ऐसा कुछ कर डाले ।।
सृजन कार्य होता कठिन ,विध्वंस बहुत आसान।
विध्वंस जगत का शत्रु होता ,पर होते सृजन महान।।