लुत्फ भला लेते क्यो इतना,नफरत को फ़ैलाने में।
अपने घर के ही कोने में, खुद ही आग लगाने में।।
कितना सुन्दर,कितना बिशालघर,थातेरा इस दुनियामें।
उतना सुन्दर इतिहास भारतका,जोर नहीं था दुनियांमें।
फिरभी जानें क्यों तु फंस गये,गैरों के कुटिलछलावो मे
विकृत मस्तिष्क जो खुदहै बहके,उनके ही बहकावे में।
रख जगा चेतना अपनी हरदम,पड़ना मत तूं झांसे में।
हरगिज कभी नहीं फंसना तुम,उनके फेंके पांसे में।।
बहुत लोभ,लालच की बातें, कर तुमको भटकायेगे ।
सुख शांति का जीवन तेरा, उसमें आग लगायेंगे।।
सम्प्रदाय और धर्म-अधर्म की,बात सामने लायेगें ।
जो स्वयं धर्म को समझ नपाते,पर औरोंको समझायेगें।
है मकसद उनका सिर्फ आपको,सत्पथ से भटकाना।
चल रही जिंदगी अमन-चैन से, उसमें आग लगाना।।
मजहब उनका एक सिर्फ, दंगों को फैला देना ।
जलते कटते देख सबों को उसमें लुत्फ उठा लेना।।
ये बिके लोग है होते ,करवाते हैं हत्यायें चोरी ।
मरे कटे चाहे जो कोई, है करनी उनको गिनती पूरी ।।
अगर चाहते जीना सुख से,मानवता का पाठ पढ़ो ।
सुख-शांति, समृद्धि हो ,ऐसा ही इक इतिहास गढ़ो।।
अपने पूर्वज गये दिखला जो,सुख,शान्ति का मार्ग हमें।
उनका ही अनुकरण करें, कुछ और जरूरत नहीं हमें।।