समय सब कुछ कराता है.

न कोई मित्र होता है , न कोई शत्रु होता है ।

समय के हाथ में सारे ,वही सबकुछ कराता है।।

स्नेह जबतक भरा होता, दीपक प्रज्वलित रहता ।

पर जब खत्म हो जाता,दीपक स्वयं बुझ जाता।।

जलते स्नेह ही,पर दीप का जलना इसे कहते ।

दीप तो बिन स्नेह के, एक पल नहीं जलते ।।

करता कौन है जग में, किसी का नाम पर होता ।

प्रचलन यह पुराना है ,। यही तो सर्वदा होता ।।

जगत जिसने जना , उसको कहां देखा किसीने ?

अटकल बाजियों का खेल , खेला है सबोंने ।।

वर्चस्व रखने का सदा , झगड़ा यहां है ।

निज फायदे का फिक्र ही , रहता उन्हें है ।।

सब लोभ ,लालच मोह में, मानव फंसा अब ।

निस्वार्थ और निष्काम , जानें गये कहां कब ।।

यही अवगुण है हावी, जो मनुज को खा रहा है ।

सद्गगुण को दबा उनके , उन्हीं पर छा रहा है ।।

दिल में हो रहा है, अवगुणों की वृद्धि नित-दिन।

अब हो रहा है ह्रास , मानवता का प्रति-दिन ।।

न जाने यह कहां तक जायेगा , गिरता हुआ अब ?

गिरेगा और ज्यादा , या सम्हल ही जायेगा अब ??

लटकता ही रहेगा क्या अधर में, भविष्य इसका ?

या निकलेगा चमक कर और ज्यादा,भाग्य इसका ??

जो भी है समय के हाथ में, सारा पड़ा है ।

यही बतला सकेगा , और क्या बाकी पड़ा है।।

समय सबका बदलता ,बस यही तो सत्य अटल है।

सुधा भी तो समय के साथ,बन सकता गरल है ??

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