मुसाफिरों का कौन ठिकाना.

कौन अपंना कौन पराया, झमेले में इसके क्यों पड़ना।

यहां तोसब है एक मुसाफिर,किसीको किसी सेक्या लेना।।

मुसाफिरों का कौन ठिकाना,कहांसे आये कहांहै जाना।

जानकर क्या फायदा,तय तो सबको ही है जाना ।।

मत फंस माया के चक्कर में,सब के सब हैं बेगाना।

सिवा दुख के क्या देगें तुझे, जुदाई तो हो ही है जाना।।

दर्दो के सिवा कुछ और नहीं, सीखा है यह दे देना।

करके विश्राम ,पल दो पल को,उठ कर है चल देना ।।

‘मिलेगें फिर’यह कह देंगे,पर यह तो है फकत फसाना।

सच तो है यह ही केवल, नहीं लौटकर फिर मिलना ।।

यह दुनियां बस है केवल, मात्र एक मुसाफिर खाना ।

मुसाफिर ठहर जाते पल दोपल,उठते उठकरचलदेना।

सब के सब यहां मुसाफिर ही है,यह दुनियां एक मुसाफिर खाना।

फिर भी दिल लगा दिया कोई तो, निश्चित है दुख पाना।

मुसाफिर हो मुसाफिर ही रह,मिलोतो एक मुसाफिरसा

बंधन-मुक्त रह गये अगर,तो समझें तय है सुख पाना।।

सबके सब है हाथों तेरे, कहीं से खोज नहीं कुछ लाना।

बनाओ खुदको मत बोझिल,होगा मुश्किल फिरढ़ोपाना

क्यों लाद रहे गठरी सरपर, कचरो से भरा खजाना ।

यही छोड़ कर कचरे सारे,एकदिन खाली ही है जाना।।

सुनों ध्यान से बातें मेरी ,महज मशविरा इसे समझना।

लगे उचित तो इसे मानना, वरना अलग हटा देना ।।