ऐ सनम.

ऐ सनम आज भी , दिल में बसाये रखता हूं।

बीत गये वर्ष कितने पर, तुझे भुला न पाता हूं।।

वही सूरत भी तेरी , अंतिम हुआ दीदार जिसका।

बसाये दिल में उन्हें, दर-दर ही फिरा करता हूं ।।

न जाने मौसम ,क्या क्या खिलाते रहते गुल ।

तुझे महफूज बलाओं से ,पर किये रखता हूं ।।

मन का मंदिर मे तुझे , रखता हूं सजा कर ऐसा ।

असर पड़े न बलाओं का ,ये इन्तजाम रखता हूं।।

दर्द उठता है कभी जोरोंकी , दिल तड़प उठता ऐसा।

बड़े मुद्दत से इसे , पर सम्हल रखता हूं ।।

यूं रूलाती तो मुझे रोज ही, बादलों की तरह।

ख्वाब बह जाये न अश्कों संग ,ध्यान रखता हूं।।

मिले भी जब कभी , सयोगबस जमाने के बाद।

बदली हुई सूरत में भी , पहचानने की कूबत रखता हूं।

करो प्यार मुझे या न करो , ये तेरी मरजी ।

मन के मंदिर मे मूरत की तरह ,बसाये रखता हूं ।।

समय का फेर भी , नहीं दिया पड़ने तुम पर ।

आये गये तो कितने मौसम , कर बे-असर रखता हूं।।

गयी हो भूल अगर ,तुम मुझको, कोई बात नहीं ।

मन में बसी सूरत से तेरी ,दीदार रोज करता हूं ।।

अहिंसा का पुजारी

प्यार की गीत जो गाते , नहीं लाचार वे रहते ।

जोअहिंसा के पुजारी हों,कभी कमजोर न पड़ते।।

समझते जो इन्हें कमजोर, पड़े वे भूल में होते ।

असली हीरा भी उन्हें, शीशा नजर आते ।।

असली कनक को भूलवस ,नकली समझ लेते ।

पीतल को चमकता देख , कनक इनको समझ लेते।।

यह भूल तो उनकी नहीं , अपनी हुआ करती ।

इसपर सितम इल्जाम , उनके सर मढ़ी जाती ।।

अहिंसा का पुजारी प्रवल ,बापू स्वयं थे अपने ।

अंग्रेजों को भगा डाला , इसी हथियार से अपने।।

जिनके राज थे इतने बड़े, सूर्य हरदम जहां रहते ।

इनके किसी भू_भाग में ,चमका सदा करते ।।

काफी कठिन था काम यह , पर कर दिखा डाला ।

अस्त्र , अहिंसा ,सत्य का ले , उनको भगा डाला ।।

हृदय मजबूत था कितना, इन्होंने करके दिखलाया ।

ब्रिटिश सा शक्तिशाली को ,भगाकर इसने दिखलाया।।

असंभव लोग थे कहते , उसे संभव बना डाला ।

पडी हुयी बेड़ियां मां भारती को , तोड़ ही डाला।।

तुफान उठने के कबल जो ,शांति हुआ करती ।

बड़े तुफान का ही आगमन का , सूचक हुआ करती।।

जो होते शांत बाहर से, लिये ज्वालामुखी होते ।

पर जब फूट वे पड़ते , तो कर वे क्या से क्या देते।।