ऐ सनम आज भी , दिल में बसाये रखता हूं।
बीत गये वर्ष कितने पर, तुझे भुला न पाता हूं।।
वही सूरत भी तेरी , अंतिम हुआ दीदार जिसका।
बसाये दिल में उन्हें, दर-दर ही फिरा करता हूं ।।
न जाने मौसम ,क्या क्या खिलाते रहते गुल ।
तुझे महफूज बलाओं से ,पर किये रखता हूं ।।
मन का मंदिर मे तुझे , रखता हूं सजा कर ऐसा ।
असर पड़े न बलाओं का ,ये इन्तजाम रखता हूं।।
दर्द उठता है कभी जोरोंकी , दिल तड़प उठता ऐसा।
बड़े मुद्दत से इसे , पर सम्हल रखता हूं ।।
यूं रूलाती तो मुझे रोज ही, बादलों की तरह।
ख्वाब बह जाये न अश्कों संग ,ध्यान रखता हूं।।
मिले भी जब कभी , सयोगबस जमाने के बाद।
बदली हुई सूरत में भी , पहचानने की कूबत रखता हूं।
करो प्यार मुझे या न करो , ये तेरी मरजी ।
मन के मंदिर मे मूरत की तरह ,बसाये रखता हूं ।।
समय का फेर भी , नहीं दिया पड़ने तुम पर ।
आये गये तो कितने मौसम , कर बे-असर रखता हूं।।
गयी हो भूल अगर ,तुम मुझको, कोई बात नहीं ।
मन में बसी सूरत से तेरी ,दीदार रोज करता हूं ।।