न ज्ञानी का कदर होता ,न विद्वानों का है होता ।
कद्र गुण्डे , लफंगे ,मवालियों का,आज है होता ।।
सबकुछ जानते हो आप , पर मस्का नहीं आता ।
भरे गुण आप में सारे , खुशामद ही नहीं आता ।।
प्रविण हैं आप विषयों का ,तो समझें कुछ नहीं आता ।
अगर चमचागिरी आती ,समझ सबकुछ तुझे आता ।।
यह चीज ही ऐसी ,कि सब झुकते चले जाते ।
आप की मधुर-वाणी में, लोग फंसते चले जाते ।।
अपनी बड़ाई आप के , मन को बहुत भाती ।
दिल चाहता इनलोग की ,संख्या ही बढ़ जाती।।
ग्रसित इस रोग से अधिकांश,मानव ही हुआ करता।
विरले ही मिलेगें कोई, जिनमें यह नहीं होता ।।
ठगी जो हैं किया करते ,इसी का लाभ ले लेता ।
बड़ाई आप की करके , आपको बस में कर लेता ।।
कोई विद्वजन कभी किसी से,ऐसा नही करता ।
अपनी बात को वह आप से , स्पष्ट कह देता ।।
मस्का लगाना तो कभी , सीखा नहीं उसने ।
सदा ही सत्य कहने के सिवा ,जाना नहीं उसने।।
जो कुछ कहेगा आपको,केवल सत्य बोलेगा ।
जो भी उचित लगता उसे ,सीधी बात बोलेगा।।
इन लोग मस्का , लगाना ही नहीं आता ।
घुमा कर बात को अपनी, कभी कहना नहीं आता ।।
बात स्पष्ट करने का , सबों में गुण भरा होता ।
तो समाज कितना स्वच्छ ,और निर्मल हुआ होता।।