खुशी या गम.

गमों की दौड़ भी आती ,आकर लौट भी जाती ।

यादें पर नहीं जाती , जब-तब ही रुला देती ।।

चाहता भूलना तुझको ,भुलाये भी कहां भुलती ।

कोशिश कम नहीं करता , पर तुम कहां जाती ??

मेरा प्रयास जाता ब्यर्थ , जख्में और बढ़ जाती ।

दूर तो चाहता करना , दर्द पर कम कहां पाती ??

गमों की दर्द से दिल को , कहां निजात मिल पाती ?

दिलों में बैठकर दिल को ,कुरेदती ही सदा रहती।।

कहावत है पुरानी, लोग हरदम , ही कहा करते ।

जख्म भर जाये फिर भी,दाग तो हरगिज नहीं मिटते।।

दागें याद करवाता , नजर जब भी पडी करती ।

बीती बात जो अरसों ,उभार जो फिर उसे देती ।।

भरे जो घाव थे उनका ,उसे फिर से खुरच देता ।

दर्द जो सुप्त थे हो गये, पुनः उसको जगा देता ।।

दर्द मिटती मिटाने से ,दाग फिर भी नहीं जाता ।

लगता वक्त भी काफी , पूर्णतः पर कहा जाता ??

याद का इस घरौंदा में, जीवन खेलता रहता ।

अतीत का मंच तो कुछ है सिखाता ,सीखता रहता ।।

यही अनुभूतियां गम की ,खुशी का मंत्र बन जाती ।

लिये पराकाष्ठा पर वह खुशी को , ले चली जाती ।।

खुशी गम का निरंतर खेल ,यह चलता रहे हरदम ।

जीवन वह परम होगा , रहे चाहे खुशी या गम ।।