गम लोग अक्सर बांटते , खुशियां छिपा लेते ।
जो चाहिए था बांटना , उसै ही बचा लेते ।।
खुशियों गमों की दौड़ तो , अक्सर चला करते ।
गम गर नहीं होता,खुशी महसूस कम करते ।।
महसूस बिन संवेदना , हरगिज नहीं होती ।
बिन संवेदना यह जिन्दगी भी , ब्यर्थ ही होती ।।
बिन चेतना यह जिन्दगी, क्या जिन्दगी होती ।
जो आदमी और बुत में , फर्क हुआ करती ।।
चेतना ही आदमी को , बनाये आदमी रखती ।
बिन चेतना तो आदमी, की लाश रह जाती ।।
गम स्वयं जो पीकर, खुशियां और को देते ।
बड़ै संयाग से ऐसा कोई सपूत मिल पाते।।
ये जीते और की खातिर , नहीं अपने लिये जीते ।
देते सदा ही और को , न औरों से कभी लेते ।।
अपनी जिन्दगी को और पर, कुर्वाण कर देते ।
लगा खुद जिन्दगी को दाव पर, परमार्थ हैं करते ।।
बड़े ही धन्य वे होते , बड़े पुण्यात्मा होते ।
इन्सान के ही रूप में , बड़े महात्मा होते ।।
लाखों में , करोड़ों में , कभी एकाध ये आते ।
विल्क्षण शक्ति से परिपूर्ण, विलक्षण गुण भरे होते।।
गमों को दूर करने का , कला इनमें भरे होते ।
सुपथ पर लोग को चलना , आ कर सिखा देते ।।