बच्चा चोर अपने आप तो, हरगिज नहीं होता।
मां-बाप का अहम, इसमें रोल है होता ।।
बनाकर चोर खुद संतान को ,फक्र किया करता ।
ऐसा बाप ही तो आजकल, अक्सर मिला करता।।
मां-बाप की चोरी जिसे , जिसे जन्म-जात से दिखता।
उसका पुत्र पारंगत , उस काम में होता ।।
वंश का परंपरागत गुण , प्रकृति स्वयं दे देती ।
इसको सीखने में श्रम , उन्हें करनी नहीं पड़ती ।।
इसको जानने खातिर, कहीं जाना नहीं पड़ता ।
बताने के लिये शिक्षक , उन्हें लाना नहीं पड़ता ।।
जरा खुद सोचिए यह प्रकृति , क्या काम करती है।
जन्म से पोषण -मरण तक , इन्तजार करती है ।।
बदले में किसी से बह कभी ,कोई ‘कर’ नहीं लेती ।
‘कर’की बात जाने दें , वही ब्यधान भी सहती ।।
प्रकृति के काम में बाधायें , डालना छोड़ दे मानव।
निजात सारी विकृतियों से , समझें पा लिया मानव ।।
सुचारू रुप से सिर्फ प्रकृति को, काम करने दे ।
जगत में आयी सारी विकृतियां,को दूर करने दे ।।
फिर तो स्वर्ग से हरगिज,धरा यह कम नहीं होगी।
समय पर कर्म सब होगें, न कोई आपदा होगी ।।
कभी पर आजमा कर देखनें में, हर्ज ही क्या है?
पता लग जाये तो पक्का, आखिर मर्ज ही क्या है??