तरतीब होनी चाहिये.

सहन होता नहीं ,जो दर्द अपनों का दिया होता ।

ह्दय छलनी किये देता , जिगर तो तड़प है उठता।।

टीस इसकी सहन करना , नहीं आसान हो पाता ।

सहन करने को कर लेते, विदारक पर बहुत होता।।

कोई मरहम लगाये भी , नहीं पर कारगर होता ।

दवा दे भी अगर कोई , निवारण हो नहीं पाता ।।

किसी को प्यार करना तो, नहीं गुनाह कहलाता।

जरुरत से अधिक तो प्यार भी, गुनाह बन जाता।।

हर चीज का अपना, हुआ एक दायरा करता ।

हद को पार करना ,गुनाह का शुरुआत हो जाता।।

होता दायरा हर चीज का, गरिमा हुआ करती ।

हद को तोड़ देना, मर्म को बीभत्स कर देती ।।

तरतीब ही हर चीज को, सुन्दर बना देती ।

बेतरतीब अच्छी चीज को , फूहर बना देती ।।

गुलदस्तों में लगे हर फूल, एक जैसे नहीं होते ।

पर तरतीब ही उनको, अति सुन्दर बना देते ।।

बेढंगा कुछ नहीं अच्छा , सब का ढंग है होता।

ढ़ंग से ही गुंथे ईटे , राज प्रासाद बन जाता ।।

भवन निर्माण की सामग्रियां,बिखडी पड़ी होती ।

पर तरतीब ही इनका , भवन सुंदर बना देती।।

तराशना जानता जो , तराश कर क्या -क्या बना देता।

तराश कर पत्थरों को वह , उसे ईश्वर बना देता ।।