जन्नत से लगे प्यारी मेरी धरती

सूरज से जरा कहिये , किरण हल्की करे अपनी।

पवन को इत्तिला कर दें,वेग को कम करे अपनी।।

बता दें आसमां को , बादलों को वे कहें अपने ।

मचाये शोर न किंचित ,छाया ही करे कंपनी ।।

बोलें बसंत को आ ढ़के , फूलों से ये धरती ।

तरतीब सारी आ लगा दे ,दुल्हन लगे धरती ।।

बिखेर अपनी सुगंधो को, पवन में ताजगी भर दे।

मधुप पी कर मधु हो मत्त, डोले करे मस्ती ।।

चिड़ियों की चुहलकदमी , फूलों की डालों पर ।

फुदक कर फूल पर हरदम,रहे अठखेलियां करती ।।

आलम ही गजब कर दो, जो देखे महबूबा मेरी।

भुला दे स्वयं को खुद ही ,लगे प्यारी मेरी धरती।।

जन्नत से बहुत बेहतर, लगे मेरी महबुबा को यह ।

त्याग कर लौटना चाहे नहीं,प्यारी मेरी धरती ।।

आना पड़े गर छोड़ जन्नत, को उन्हें मही पर ।

करे जाहिर खुशी ,बन जाये प्यारी,जन्नत से भी धरती।

अहमियत कम कभी होती नहीं,धरती की दुनिया में।

यही तो कर्म का स्थल , अकली है मेरी धरती ।।

बहुत है चंचला , कुशाग्रबुद्धि ,मबबुबा मेरी ।

उनको पता सब, छोड़ कर ,पर आयी है धरती ।।

भ्रमर करता फिरे गुंजन , गुलिस्तां के प्रसूनो पर।

नजारा देख कलियां ,हो विवसबस आह सी भरती ।।

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