सोंच है अपना.

कोई दुनियां बड़ी कहता ,तो छोटी कोई है कहता।

जिसकी जो समझ होती,वही उसको कहा करता।।

नहीं है कोई पैमाना , उसै जो नाप ले जा क र ।

पैमाने से बड़ा को बडा , चलाते काम है कहकर।।

है अहमियत उसका नहीं, अहमियत सोंच का होता।

नापना चाहते कैसे , अहमियत ढंग का होता ।।

होती सोंच की सीमा नहीं, सीमा से रहित होता।

किसी का सोच है कितना बड़ा,कोई कहनहीं सकता ।।

कहां कोई बांध पाया आजतक,इस सोच को अपने।

बनाया है उसे जिसने, बनाया खूब है उसने ।।

एक ही चीज को कहते बड़ा कोई,छोटा कोई कह देता।

नजरिया है अलग सब की,जो कहता ठीक ही कहता।।

दुनियां है बड़ी कितनी ,अभी तक है कहां जाना ।

अभी समझा जहां तक, मानता उसको ही पैमाना।।

प्रयासरत हैं जानने में, रहस्य कुछ ब्रह्माण्ड का हम।

समझना है अभी बाकी ,पर हैं लगे दिन-रात सब हम।।

हौसला जो है तो शायद, हम वहां तक भी पहुंच लें।

बहुत जो दूर दिखते ,रास्ता पर सुगम कर लें ।।

मनुज जब ठान लेता है,हासिल किये बिन दम न लेता।

विधाता स्वयं आ उसको, सबकुछ पूर्ण करा देता ।।

बहुत सी शक्तियां देकर , मनुज उसने बनाया है ।

कुछ भी कर दिखाने का, जौहर दे पठाया है ।।

उन शक्तियों को जागृत , कर सिर्फ है रखना ।

अपने कर्म-पथ पर अग्रसर , होते सदा रहना ।।

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