तनाव पूरे विश्व में , क्यों न जाने बढ़ रहा ?
है तो कोई चीज जिससे ,मानव प्रभावित हो रहा।।
प्रभाव है वातावरण का, या असर कुछ कर रहा ।
है कौन सी निकृष्टता , जो मनुज पर छा रहा ।।
उन्मादित कुछ तो कर रहा,मानव की पावन ज़िन्दगी को।
पथ से उठा कर वह कुपथ में ,ला रहा है ज़िन्दगी को।।
असर सबों पर आ रहा, और मन को भा रहा ।
कुकृत्य ही अधिकांश पर, प्रभाव अपना ला रहा।।
खान-पान,रहन-सहन, या बदलता हुआ वातावरण।
प्ररभावित गंगा कर रहा,परेशां है सारे जनका मन।।
या अन्य कोई अभाव है, उसी का ये प्रभाव है ।
चिड़चिड़ा हर आदमी का , कर रहा स्वभाव है।।
उदंडता ही मानवों में , आज इतना बढ़ रहा ।
सोंचने का ढ़ग ही, हर लोग का बदल रहा ।।
जाने दया की भावना , क्यों सु्प्त होता जा रहा ?
उदण्डता ,कठोरता , कब्जा जमाता जा रहा ??
मरने और मारने पर ,सब उतारू हो रहे ।
जिन्दगी पर मौत ही , कब्जा जमाते जा रहे।।
दानवता का इस समर में, मानवता की हार है ।
क्या चपेट में नहीं , पूरा ही अब संसार है??
परिवर्तन कोई अवश्य होगा,हो रहा ये भान है।
इन्सानियत का विजय होगा ,मेरा यही अनुमान है।।
दूरी नहीं अब रह गयी ,वह भी निकट ही आ गया ।
बुराई पर सच्चाई का ,समय विजय का आ गया ।।