समय का मार ने , कब किसी को छोड़ा है ।
बड़े-बड़ों को भी इसने, धरती सुंघा के छोड़ा है।।
स्वय को अमर समझ जो ,डूब जाते अत्याचारों में।
कब्र खोदकर उन्हें भी , दफन कर ही डाला है ।।
कितने आये, आकर गये चले , सितम ढाये ।
उन कुख्यात को , कयी बार, उसने मसल डाला है।।
बर्बर आये दुनिया में, निशानी छोड़ गये अपनी ।
समय सब धो दिया उसको , निशानी मिटा डाला है।।
ढंग समझने का , होता है अलग सब का ।
सेव तो नित्य गिरते देखते ,न्यूटन क्या देख डाला है।।
खुदा ने तो दिया है आंख दो-दो, देखने समझने को ।
नयन बिन ‘सूर’ने देखा , कहां कोई देख पाया है ।।
जहां में कौन अच्छा है, बुरा भी कौन है सबसे ।
देखा है अनेकों लोग पर, दृष्टिकोण अपना है ।।
प्रकृति ने है दिया मस्तिष्क मनुज को,विवेक भी डाला।
समझने बूझने की भी अकल, उसमें है दे डाला ।।
चश्मा लोभ का मानव, आंखों पर पहन रखा ।
उसे तो वास्तविक था देखना , रंगीन पर देखा ।।
जो असत्य था , उसको नजर ने सच समझ बैठा।
चश्मा लोभ का उनको , क्या से क्या दिखा बैठा ।।
ओ
विधाता का दिया था ज्ञान,ढक उसको यही देता ।
जो था सत्य , चश्मे ने उसे भी बदल है देता ।।