ऐ मातृभूमि के रखवालों,तुम अविरल रक्षा करते हो।
जब देश तुम्हरा सोता है, सीमा पर डट तुम रहते हो।।
हो मातृभूमि की तपती धरती,कंटक बबूलका,भरा उद्यान।
पग पग हों कंटक चुभते, आगे दुश्मन बंदूकें तान।।
या कहीं कड़ाके की ठंढक,बन वाष्प रूईका फाहा सा।
प्रयास कोई कर रहा हो मानों,धराको ही ढ़क देने का।।
जीव-जन्तु वन के सबके सब,अपनें दरबेमें छिपे कहीं।
पर बीर प्रहरी,बेफिक्र झेलते,डटे हुए वे कहीं वहीं ।।
तेरी कर्मठता का क्या बोलूं,समझ में कुछ आती नहीं।
तेरा देशप्रेम को देख कर,बिन कहे रहा जाता नहीं।।
ऐ बीर सैनिकों धन्य तुम्हीं हो,भारत मांका प्यारा लाल।
हरदेशवासी करता तेरा आदर,सबदेख रहातेरा कमाल
हैं सभी सुरक्षित देशवासी,तेरी कर्मठता के कारण।
बढ़ रहा देश आगे मेरा ,तेरी दी निर्भिकता के कारण।।
स्वयं झेल कर आपदाये तुम, रक्षा देश का हो करते ।
खुद झेल गोलियां दुश्मन का,अमन देश को हो देते।।
देश प्रगति जब है करता, उसमें तेरा रोल अहम है।
दुश्मनसे निर्भीक रखना,नहीं क्या तेराकाम अहम है??
वैज्ञानिक खोज नया कर,कितना तुझे समर्थ किया।
तुमको युद्ध में लड़नेका नयी,अस्त्र-शस्त्र संधान किया।
किसान देश का सदा से तेरा,कदम से कदम मिलाया।
तुमको और तेरे देशवासी को,भोजन भर पेट कराया।।
देश तुम्हारे साथ खड़ा है, अपने मोर्चा पर डटा हुआ।
जो जहां रहा कर्तब्य निभा,तेरे मदद को खड़ा हुआ।।
मत सोंच अकेले तुम हो रण में, है देशवासी संग तेरे।
विविध समर्थन देकर तुमको,कर कुशल कामना तेरे।।
सदा डटे रहना, दुश्मन का,खट्टे दांत करा कर।
तुम निर्भिक हो शेर बहादुर,दुश्मनका अंत किया कर।।