जो आंखें देखती है देख,पूर्ण बिश्वास मत कर लें ।
खाती भी नजर धोखा, इसपर गौर तो कर लें ।।
भ्रम में डाल मस्तिष्क को ,न जाने दिखा देता ।
मस्तिष्क देख कर उनको ,पूर्ण बिश्वास कर लेता ।।
धोखा पूर्ण खा जाता, बातों को उलट देता ।
दिल को झूठ अपने जाल में ,कसकर जकड़ लेता।।
झूठी बात को ही सच समझ,उसपर अडिग होता।
घुसायें लाख सच्चाई उन्हें, पर घुस नहीं पाता ।।
भ्रमित को राह पर लाना,कभी आसान न होता।
मस्तिष्क पर पड़े प्रतिबिंब, वहां से हट नहीं पाता।।
समस्या आज की कोई नयी नहीं, काफी पुरानी है।
दिग्गज जो हुआ करते, वह भी हार मानी है ।।
अन्यथा कृष्ण कोथी क्या जरूरत,ब्रह्माण्ड दिखलाना।
खुद थकते नजर आये, पड़ा यह सब उन्हें करना ।।
अर्जुन थे पड़े भ्रम में, समझ पाते न समझाये।
लाचार हो कर कृष्ण यह,करतब थे दिखलाये।।
कभी आसान होता है नही,समझे को समझाना ।
प्रथम जो भी छवि बनती , उसे बिल्कुल मिटा देना।।
जो दिखता आंख को, सच मान लेना भी गलत होता।
मृगमिरीचिका जो है दिखाता ,गलत ही होता ।।
तहों तक जाइये ,जाकर उसे , हर तरह समझें।
खड़ा उतरे अगर वह हर तरह,तो सत्य उसे समझे।।