ऐ मन -मुसाफिर क्यों मेरे , तुम चैन से रहते नहीं !
रुकते नहीं पल भर कहीं, पल में यहां,पल में कहीं।।
चलते सदा दिन-रात रहते, विश्राम बस थोड़ा कहीं।।
चैन पल भर भी न मिलता , मिलती कहीं शान्ति नहीं।।
अशांत मन को सुख मिले, होता कभी ऐसा नहीं ।
सुख के बिना तो शान्ति , मिल कभी सकती नहीं ।।
बस शांति में ही जिन्दगी को , प्राप्त होता ज्ञान है।
चिन्तन-मनन कर आदमी, बनता रहा महान है ।।
ऐ मन-मुसाफिर तुम सदा ,बढ़ते हो, रुकते हो नहीं।
चिन्तन बिना कोई कभी, ज्ञान गूढ़ पाता है नहीं।।
गंतव्य क्या है, ऐ मुसाफिर,यह तो पहले जान लो।
सबसे सुगम क्या रास्ता ,जान लो पहचान लो ।।
यूं ही भटकने से कभी, मिलता नहीं गंतव्य है ।
दौड़े अगर भर जिन्दगी, मिलता नहीं मंतव्य है।।
पहुंचता नहीं कोई बिन चले,यह बात बिल्कुल सत्य है।
गंतव्य बिन चलता रहे, चलना नहीं क्या व्यर्थ है!!
हासिल नहीं बिन दूरदृष्टि , कोई कर पाता नहीं ।
पक्के इरादे के बिना, कोई सफल होता नहीं।।
मन-मुसाफिर गर बढ़े, गंतव्य पक्का जान कर ।
तय पहुंचना ही उसे है ,चलना यही है मान कर।।
हासिल जिन्हें गंतव्य है , वे ही सफल व धन्य हैं।
जो रास्ते में गये अटक , वे जिन्दगी मे फेल हैं।।