बचा ही अब क्या पास मेरे, आगे बताने के लिये।
बातें तो सारी कह दिया,रहा ही क्या छिपानेके लिये।।
जो चलतेचाल रहते रात दिन,किसीको फंसानेके लियै।
पांसा खुद पलट जातीतो भागते,गर्दन बचाने के लिए।।
रिश्तेदार को कभी ढ़ूढ लाते,घर बचाने के लिये ।
आकर छिड़क पेट्रोल देते,वे धधक जाने के लिए।।
रिश्तेदार तो मिलते अनेकों,पर धमाल करने के लियै।
मामला कहीं गयी अंटक, झट कर कटाने के लिए ।।
जमघट सदा चमचों की रहती, जरुरत क्या बुलाने केलिये।
जरूरत हो अगर ख़ोजेन मिलता,जनाजा उठाने के लिए।।
दीपक जलाते लोग ,घर रौशन कराने के लिये ।
क्या कोई सोचता दीपक जला है,घर जलाने के लिये।।
करते भरोसा दोस्त पर,दुर्दिन में साथ के लिये ।
लगाये घात क्या बैठे रहेगें,लाभ उठाने के लियै??
आता समझ में कुछ नहीं, अपना कहें हम किस लिये।
दुश्मन से भी बदतर निकलते,अस्मत डुबाने केलिये।।
संसार अब ना रह गया,सज्जन के रहने के लियै।
परिवेश केवल है बचा ,शैतान दुर्जन के लिए।।
दोस्त , रिश्तेदार पर, भरोसा न ज्यादा न कीजिए।
सब दांत हाथी का ये होतै ,सिर्फ दिखाने के लिए।।
अपनी बात पर कहता है सिनहा,ध्यान देनेके लिये।
स्वावलम्बी बनने का सदा,प्रयास करने के लियै ।।