किसे बिसारूं.

किसे पुकारू, किसे बिसारू,समझ नहीं मन पाता है।

कैसै भवसागर पार करूंगा,थाह नहीं मन पाता है।।

जिधर फेरता नजर, सामने भवसागर ही दिखता है।

कहीं किनारा नजर न आता, मन मेरा घबराता है ।।

कोई सहारा देने वाला, ना ईर्द -गीर्द मे दिखता है।

बार-बार मै तुझे पुकारुं , उचित नहीं यह लगता है।।

सबकुछ तुमने दे कर भेजा,फिर भी दिल क्योडरता है।

नासमझी की हद करदी,यह भूलभी मुझको खलताहै।।

जब हाथ तेरा है मेरे सरपर,ब्यर्थ कहीं पर डरना है।

निर्भिकता सै सत्पथ पर ,अविरल बढ़ते रहना है।।

अपना काम मुझे है करना,क्यों फिक्र आगेका करनाहै।

स्वयं सोच कर हमें कहेगा,क्या आगे अब करना है ।।

क्या करना ये मुझे बता,उसकै आगे क्या करना है।

निर्देशन करता है करदे,अब कैसा रोल निभाना है।।

तुम निर्देशक मैं कलाकार,मुझे कला सिर्फ दिखलानाहै

तुम्ही जानते आगे मुझसे,कैसा रोल कराना है।।

कलाकार भी तुम्ही बनाया ,रचना भी सारी तेरी है।

जिसका रोल मिलेगा मुझको,सकुशल मुझे निभाना है।

पात्र अनेकों तुम्ही बनाये,सब को कुछ तो करना है।

क्या करना है तुम्हें पता है,समझो बस कुछ करना है।।

ख्याति दो या कुख्याति,पर तुझको ही देना है।

तेरी मर्जी जो भी दे दो, शिरोधार्य मुझे करना है।।

क्या करना है, मुझे पता है, ब्यर्थ मेरा कुछ कहना है।

मैं अज्ञानी फिर भी कहता ,बिन कहे शांत न रहना है।।