१८/११/२०१९
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(क)
तन की शोभा लोग देखते, मन की देख नहीं पाते ।
मन की आंखें खोल देख तो , स्पष्ट दिखाई देते ।।
भला बुरा मन को ही लगता,मस्तिष्क सोंच बताते।
आंख,देख सम्बाद पठाते, बाकी सब कुछ मन करते।।
(ख)
कौन किसे सुन्दर लगता है, किसे असुन्दर लगता।
पसंद अलगहै सबकी अपनी,कब कौन किसे मनभाता
निर्माता तो एक सबों का ,सब को यही बनाता ।
कलाकार तो ठीक बनाता,दर्शक समझ न पाता।।
(ग)
नहीं प्रेम की खेती होती ,न वन में कहीं उपजता ।
नहीं प्रेम में दौलत लगता, मुफ्त सबों को मिलता ।।
फिर भी स्नेह को बांट न पाते,कैसा पत्थर दिल तेरा।
साथ नहीं कुछ भी जाता , यही पड़ा सब रह जाता ।।