घर हो किराये का .

किराये का घर का ,मजा ही कुछ और है।

न रंग पुताई की चिन्ता ,न टूटने का भय है ।।

मस्ती से रहिए , सिर्फ दे कर किराया ।

घर वहीं लीजिए , जो मन को भाया ।।

सारे घरों पर तो , अपना ही राज ।

घर वहीं रखिये , जहां रहता हो काज ।।

अधिक दूर जानें का , रहता न चक्कर ।

कार्यालय पहुंच लें , पैदल ही चल कर ।।

खाना न पड़ता , सवारी का धक्का ।

ले सिर्फ पहुंचने में , पांच मिनट पक्का।।

बचेंगे जो भाड़ा , चुकायें घर का किराया ।

दोनों ही बचेंगे , समय और किराया ।।

किराये का घर में ही , मस्ती से रहिये ।

सारे घर है तुम्हारे , जहां जी चाहे रहिये।।

कभी मत देखिए , कि पडोसी है कैसा ।

मतलब ही क्या है , रहे चाहे जैसा ।।

बढायें न ज्यादा कभी , दोस्ती का हाथ ।

मत सोंचो पडोसी भी , रहता है साथ ।।

सदा के लिये कोई तो , आया नहीं है ?

दुनिया में कुछ भी , स्थाई नहीं है ।।

रजिस्टरी करवा ली , पर सारे हैं ब्यर्थ ।

स्थाई जिसे कहते हो , वह भी तो है ब्यर्थ।।

हम से तो अच्छा ढ़ेरों , होता है परिंदा ।

कभी कोई किसी का न , करता है निंदा ।।

खाता कहां है तो , रहता कहीं है ।

महल या ईमारत की , चिन्ता नहीं है।।

बंध कर कहीं वह तो , रहता नहीं है ।

बृक्ष सारे है उनके , आशियाना यही है।।

आजादी का जीवन तो, जीता यही है।

मुफ्त राशन भी कोटा का ,खाता नहीं है ।।

शिकवा शिकायत ,न करता किसी का ।

दोस्ती दुश्मनी भी न , करता किसी का ।।

दिल का है भोला , सदा मस्त रहता ।

खा-पी मजे से , मस्ती से रहता । ।

फिर भी किसी से , न रहता जलन है ।

मानव की तरह उनमें , रहता न छल है।।

सुकून से भरा उनका , जीवन है होता ।

कभी दुख न कहता , बैठ कर भी न रोता ।।

मस्त खुद में ही रहता ,द्वेष रखता नहीं है ।

जीव तो है ये छोटा , पर रोता नहीं है ।।

मानव से परिंदा , कहीं ज्यादा सुखी है ।

भेद अपना पराया का ,रखता नहीं है ।।

सुख से जीना जो चाहो ,तो किराये का घर लो ।

भूल से भी न सोंचो ,कि अपना ही घर हो ।।

कभी