ऐ दिल बनानेवाले,इसे नाजुक तूं क्यो बनाया ?
इस बेरहम दुनिया में ,फिर क्यो हमें पठाया ??
देता है कोई ठोकर , सब की ज़ुबांयें चलती ।
यूं चोट भी हो हल्की , फिर भी है दिल को सलती।।
कोई बेरूखी सी हरकत ,बेचैन करती मुझको ।
बदला किसी का तेवर , परेशान करता मुझको।।
संजीदगी से लेता , है क्यो किसी की बातें ।
परेशानियां है सलती ,करवट में कटती रातें।।
जरूरत ही क्या थी मुझको , बातों को उनकी सुनना।
सुन भी लिया अगर तो , ध्यान उस पे रखना ।।
तूं नाजुक बनाया दिल को , परेशानियां में पड़ गये।
यह चूक थी तुम्हारी, हम भोगते ही रह गये ।।
था पत्थरों पे जीना , पत्थर बनाते हमको ।
दुनिया लगाती ठोकर ,पड़ता न फर्क मुझको।।
संवेदना न होती , गर नाजुक न दिल ये होता ।
अनुभूति मेरे दिल को , थोड़ा हुआ न होता ।।
दिल को बनाया नाजुक, तूं ही बता किया क्या ?
होता सहन न दिल से , तूं ही बता करूं क्या ??
कोमल हृदय हमारा , पत्थर सहन न करता ।
कठोरता तुम्हारी , बेचैन कर के रखता ।।
वेदना हृदय का , सुनता न कोई मेरा ।
आक्रोश होता तुम पर , क्या तूं बना के छोड़ा।।
था भेजना मही पर , अनुकूल बनाया होता ।
शक्ति सहन की मुझमें , कुछ और ज्यादा देता।।