शिक्षा हो जहां महंगी ,बता क्या देश का होगा?
शिक्षा सिर्फ अमीरों के लिये,गरीब का हाल क्या होगा?
बंचित हो रहे कितने, मेधा साथ में रख कर ।
विवस हो कर पड़े हैं पस्त , धन की मार खा-खा कर।।
ब्यवस्था ही हमारे देश की , चरमरा सी गयी ।
जनता चोर बनने को , लगभग विवस सी हो गयी।।
मेधा हो गया बेकार , दिया है डाल खुद हथियार।
गरीबी दाब कर उसको , बिलकुल कर दिया लाचार।।
अगर फिर भी न माना हार,करता रह गया ललकार।
शिक्षा पा लिया ऊं चा, भले ही बिक गया परिवार ।।
चयन हमकर जिन्हें भी , देश की चाभी थम्हा डाली।
उन्ही ने लूट मेरे देशकी, तिजोरी कर दिया खाली ।।
नंगा कर दिया हमको, बड़े तरतीब से लूटा ।
बेशर्मी से बनाया मुर्ख , धूर्त से कुछ नहीं छूटा ।।
बिल्ली ही हमारी आज, हमपर म्याऊं करती है।
दही की खा गयी छाली हमारी,हम्हींपर गुड़गुराती है।।
जिसे रक्षक बना भेजा , बन भक्षक वही बैठा ।
लूटा ही न केवल देश को, कर्जा में डुबो बैठा ।।
सुबिधाये जितनी हो सकी, अपनें लिये रखा ।
जनता को झूठी सान्तवना दे,फांस कर रखा ।।
सुरक्षित कर दिया खुद को ,सुरक्षा जेड का पाकर।
जनता का किया शोषण , बड़े ही शान से जमकर ।।
बनाया है तुझे जिसने, उसीपर जुर्म करते हो ।
अरे बेशर्म तो सोंचों जरा , क्या कर्म करते हो ।।
शिक्षा ज्ञान का मंदिर का, भी ब्यवसाय कर डाला ।
देश की आत्मा का तूं , घृणित ब्यापार कर डाला ।।
नयी पीढ़ी जो निकलेगी , बता क्या बात सोंचेगी?
उसे कितना सताया है , नहीं क्या बात सोंचेगी ??
भावना देशभक्ति की , क्या भरने नहीं दोगे?
सोचों देश की क्या दुर्दशा, करके ही छोड़ोगे??
गुलामी से भरा एक रास्ता , है नही यह क्या ?
कदम उस ओर ही बढ़ते हमारे, जा रहे न क्या??
स्वास्थ्य शिक्षा का ब्यवस्था,देश गर कर दे।
मेधा हो रहे वंचित,उच्च शिक्षा उसे दे दे ।।
मेरूदंड अपने देश का, तन जायेगा निश्चित ।
संख्या चोर का समाज से ,कम जायेगा निश्चित।।
भक्ति भी वही करते, पेट जिनका नहीं जलता ।
उदर की अग्नि लोगो की , बातों से नहीं भरता।।