दर्द देते है सभी , पर दर्द लेते भी सभी ।
बात यह मानव की है, यों जीव तो हैं ही सभी।।
जो पराया दर्द को भी , महसूस करते करीब से ।
सिर्फ मानव वह नही , उपर है मानव जीव से ।।
मानव की संख्या बढ़ रही , विभिन्न अनेक रुप हैंं ।
बाहर से जैसा नजर आते , भीतर वही क्या रूप है??
बाहर से कुछ दिखते वही , अन्दर भी वे होते नहीं।
इन्सान को ही लीजिए ,कुछ भी पता चलता नहीं ।।
जो अन्दर भीतर एक होते, वह मानव होते बडे महान।
छल-प्रपंच से वंचित होते, सज्जनता का यह प्रमाण ।।
मानव मस्तिष्क में ज्ञान भरा, भरने वालों ने ज्यादा।
उम्मीद बाँध रखा था उससे ,पहुँचा उससे भी ज्यादा।।
जो छल-प्रपंच का जीवन जीते,अमन चैन खो देते ।
जिनका जीवन सादा होता , जीवन का रस वे पाते ।।
सादा जीवन, सुखमय जीवन , जीवन रस काफी होता।
जीवन का माधुर्य सही में , जीवन भर उसको मिलता ।।
नहीं किसी का भय है उनको , ईर्ष्या नहीं किसी से ।
सुखमय जीवन वे जीते हैं ,हटकर इन सब कुछ से ।।
मानव मन की गहराई , होती जो बहुत अनन्त ।
पा सकते हैं तल तक जा कर , रत्नें वहाँ अनन्त।।
स्वयं आप का मन ही तो है, रत्नों का आगार ।
अन्यत्र खोज में भटक रहा क्यों , यह सारा संसार।।