करते गुनाह खुद मगर , गुनहगार कहते और को ।
खुद गन्दगी में डूब कर , छींटा दिखाते और को ।।
सिलसिला ही समाज में , आज ऐसा हो रहा ।
सच्चाईयों पर झूठ का, पर्दा गजब का चढ़ रहा।।
चोर चोरी स्वयं कर , हल्ला मचाता चोर चोर ।
एक शरीफ को ही शोर कर, कहता रहा है चोर-चोर।।
लगता है इस परिवेश में , शराफत गुनाह बन गयीं।
शरीफ की गरिमा महज , मखौल बनकर रह गयी ।।
संख्या बलों का राज है ,अच्छे बुरे में भेद क्या अब?
बुद्धिमान, मूर्खाधिराज में ,रह ही गया है फर्क क्या अब??
‘खाजा टके सेर ,भाजा टके सेर,’ कहावत बहुत पुरानी।
मात्र थी पहले कहावत ,हुई अब संविधान की वाणी ।।
फर्क ही अब है बचा क्या , हों विद्वजन या हों गँवार।
हक तो सबों का एक है , मिला बराबर का अधिकार।।
शिक्षित अशिक्षित में नहीं अब, फर्क कुछ भी रह गया।
अशिक्षितों का राज अब तो , शिक्षितो पर हो गया ।।
मतलब ही हमने नागरिक का ,बदलकर के रख दिया।
देखा नगर नहीं जिन्दगी भर, पर नागरिक उसे कह दिया।।
एक प्यून बनने की नहीं थी, योग्यता जिनमें कभी ।
चयन कर गद्दी दिलाना , क्या उचित लगता कभी।।
तेल चमेली का छुछुन्दर ,के सिरों पर की कहावत ।
चरितार्थ होती नजर आती,क्या नहीं है यह कहावत??
अनिवार्य शिक्षा भी जरूरी, चाहिए उन लोग को ।
चाहें जो बनना जनप्रतिनिधि, उन सभी हर लोग को।।