(क)
मिली जिनको नहीं आँखें, अँधेरा क्या बिगाड़ेगी ?
सुरीली तान बंशी की, बधिर को क्या रिझायेगी ??
समाँ खुशबू भरा ही हो ,अनेकानेक फूलों से ।
घ्राण हो ही नहीं जिनमें, मादकता क्या झुमायेगी??
(ख)
कदम खुद ही बहकते हैं नहीं, बहकाये जाते हैं ।
जुबानें खुद फिसल जाती नहीं ,फिसलाये जाते हैं।।
गलत कुछ काम करनें के कबल,साजिश रचे जाते।
जिसके तहत सब काम को ,करवाये जाते हैं ।।
(ग)
बहाना लाख मारे कोई, बातें निकल जाती है ।
कब्रमें दफ्न कर देते , निकल कर आही जाती है।।
जरूरत अक्ल की होती, गडे को ढूँढ लेने की ।
धरती में छिपायी चीज भी, नजर आ ही जाती है।।
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