ऐ सपने ,मधुर सपने , क्यों नित्य यहाँ आते हो ।
मेरी निद्रा कर भंग मुझे , जगा जबरन देते हो ।।
निद्रा आती मुझे सुलाती, भर कर आगोश में अपनी।
सो जाता हूँ बडे़ प्रेम से , थकन मिटाता हूँ अपनी ।।
देती बहुत सुकून मुझे , स्पर्श तुम्हारी ऐ निद्रा ।
देती हो आकर चैन मुझे , एहसान तेरा हमपर निद्रा ।।
गम सारे मिट जाते मेरे , बस तेरे आ जाने से ।
फिर नयी चेतना जग जाती , तेरे ही बहलाने से।।
सहन नहीं कर पाता सपना , सहन न उसको होता।
मेरी खुशियों देख जलन , उसको भरदम होता ।।
निद्रा करती प्यार मुझे ,आँखों में खुमारी आ जाती।
मेरी खुशियाँ नही स्वप्न को, कभी सहन है हो पाती ।।
पता न जाने क्यों है करता , बन मत्सर सा सपना ।
सहन नहीं होता क्यों उसको , प्यारी निद्रा अपना।।
कभी स्वप्न आकर मेरी तो , निद्रा को भंग कर जाती है।
कभी हंसाती ,कभी रुलाती , इसे तंग कर जाती है ।।
हल्की निद्रा जब आती है , सपना आ तभी धमकता है।
थकन मिटाने वालों को, जी चाहे वहीं नचाता है ।।
चीजें नयी दिखाती सपनें ,हल्की निद्रा में आते ।
कभी विभिन्न चीजें ऐसी , जो समझ न मेरे आते ।।
कभी न सम्भव होता जगमें ,सपने वहभी दिखलाते ।. जहाँ न कल्पना जाती मेरी , पर पहूँचा तुम देते ।।
बढ़ते जीवन में लोग वही , जिनके सपने ऊँचे होते।
जो भी करते निर्माण बडे़ , पहले नक्शा बन जाते ।।
पथ चयन ठीक जो कर लेते ,नहीं भटक वे पाते ।
गणतब्य उन्हीं को मिल पाता ,अथक जो चलते जाते।।