किसे सुनाऊँ मन की बातें ,कौन सुनेगा मेरा ।
जिसे सुनाऊँ ब्यथा हृदय का,माखौल करे सब मेरा।।
घुटन तेज होता रहता ,पीड़ा भी मन की बढती जाती।
मन ब्याकुल हो खोज रहा,बेचैनी भी कम नहीं पाती ।।
बची एक मनमीत मेरी, वह मेरा जीवन साथी ।
सुनती और सुनाती नित दिन , कभी भी नहीं अघाती ।।
सिर्फ उसी से कह पाता हूँ ,अपनी मन की बातें ।
बहुत भरोशा उसका मुझपर , कट जाती है दिन रातें।।
सदा नसीहत देती रहती, सदा नसीहत सुनती ।
सुनने और सुनाने में ही , जीवन नैया चलती ।।
युग नित्य बदलता ही जाता ,मतभेद बढा अब जाता ।
तलाक नित्य बढ़कर ऐसा , संकेत नहीं क्या देता ??
शक होना भी स्वाभाविक है ,बन्धन का ढीला होना ।
गर और यही बढ़ता जाये , तब तय है ऐसा होना ।।
फिर नहीं जानवर का सा जीवन,मानव का हो जायेगा ?
जब सबकुछ बंधनमुक्त रहेगा , तो फर्क कहाँ रह जायेगा।।
फिर सुनना क्या ,सुनाना भी क्या, कुछ बचा नहीं रह जायेगा।
शिकवे और शिकायत करना , सभी खत्म हो जायेगा ।।
मानव फिर स्वयं अकेला होगा, नर और नारी दोनों ।
चौपायों सा कहीं बिचरने ,लग जायेगा दोनों ।।
सब जीवों में श्रेष्ठ नहीं, मानव फिर कहलायेगा ।
ऐसी हालात हो जहाँ कहीं, मानवता क्या बच पायेगा??
हम पुनः घिसक पीछे आदिम ,बनने की ओर न जा रहे?
बढ़ना क्या आगे कह सकते ,नहीं क्या पीछे जा रहे ??
स्वयं सोंचना होगा सब को , मस्तिष्क पर जोड़ लगाये।
मंथन कर ले पहले मन में , फिर आगे कदम बढ़ायें ।।