(अ)
चाहे तराशें लाख शीशा , हीरा तो बन पाता नहीं ।
खर को रगड़ रगड़ कर धोवे ,घोड़ा बन जाता नहीं ।।
प्रकृति कुछ को बना ,संस्कार भर कर भेजती ।
स्तर विना दीवार पर भी ,रंग चढ़ पाता नहीं ।।
(ब)
सखा जिसे हो कर्ण सरीखे ,काका संग बिदुर सा ।
भीष्म पितामह रक्षक जिनको, मिले गुरु द्रोणा सा ।।
आँखों दैखा हाल बताते ृृ रहे संग संजय सा ।
संग नही थी नीति केवल , खाया दुर्योधन मुख का ।।
(स)
बिना नीति के ऱाज न चलता , बुनियादें हिलने लगती ।
विना रीति कुछ काम न होता, हालात बिगड़ने लगती ।।
दुनियाँ भी चलती नीति से ,नियमों का पालन करती ।
गर गयी टूट नीति का बंधन,दुनियाँ कब की मिट जाती।।
(द)
मुकद्दर जो बनाते हैं , न जाने क्या बनाते हैं ।
किसी को सेज फूलों की , कुछ विन बिस्तर ही सोते हैं।।
कोई देन किस्मत की बताते ,करते कर्म की बातें कोई।
जिनको जो समझ आता , वही अटकल लगाते हैं।।
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